Wednesday, September 24, 2008

पहचान

जाने क्यूँ कुछ लोग अन्ज्जाने से लगते है,
होते है पास फिर भी बेगाने से लगते है;
दुश्मन है तू कोई नही कहता ,
दोस्त भी आजमाने लगते है.
अकेलऐ है सब कोई नही समझता ,
काफिले के ख्वाब सज्जाने पड़ते है;
अर्जुन को कोई द्रोणाचार्य नही मिलता ,
मिटटी के गुरु रोज बनने पड़ते है.
जबान भी काम नही आती अपनी,
आंखों से संवाद चुराने पड़ते है;
जीतना चाहता है हर कोई ये ज़ंग,
जीत के आसूं छुपाने पड़ते है.
जिंदगी पूछती तेरी औकात क्या,
दोस्तों के नाम गिनने पड़ते है;
माँ-बाप का सहारा था मुझको वरना ,
अजन्मो को भी प्रमाण बनाने पड़ते है.
शुरू कहा कब ख़तम कोई नही जाने,
हर एक को कुछ किरदार निभाने पड़ते है;
खुशी के साथ विदा हो इस जग से ,
गम्मो के बोओझ पूरे रस्ते उठाने पड़ते है .
कहते है शायद कोई पगला गया है,
अपने से ये विचार सबको बेगाने से लगते है;

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